अर्जुन को युद्ध न करने का विकल्प नहीं था। आज हर भारतवासी हिन्दू अर्जुन ही है।

मित्रों!
गर्व से जीना है तो कंधार की मानसिकता से निकलकर एन्टेबी की मानसिकता लाना अनिवार्य है। वर्ना सेकुलर जिहादी लिब्रांडू गिरोह देश पर राज करने वास्ते देश के खिलाफ भी जाने में कोई संकोच नहीं करेंगे। राष्ट्रवादी सरकार को अपदस्थ करने के लिए वे भीतरी और बाहरी ताकतों को खुलेआम और सरेआम आमंत्रण दे रहें हैं।

अटल जी को अपदस्थ करने के लिए कंधार विमान हाईजैक के बाद के हालात याद कीजिए। कंधार की क्या बात है ? वही, IC 814 विमान का काठमांडू से अपहरण और कंधार तक उसकी अपमानजनक यात्रा। एक निर्दोष यात्री रुपिन कत्याल की हत्या करके सभी यात्रिओं में दहशत फैलाना  और भारत सरकार पर दबाव बनाना। लेकिन इस हत्या से सरकार के झुकने तक के पड़ाव के दौरान जो हुआ उसकी बात करना आवश्यक है। 

यात्रियों के परिजनों को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलजी के दरवाजेपर धरने, निदर्शन और मीडियाई ड्रामेबाजी किसने की यह भी अलग विषय है। लेकिन वहाँ लोगों को शांत करने आए पूर्व फौजी,  ताजा बलिदान हुए कैप्टन आहूजा की फौजी असफर विधवा इन सब से जिस अभद्रता से यात्रियों के परिजन पेश आए थे वह मानसिकता अधिक चिंता का विषय है। अपने स्वजनों के सामने टेररिस्टों की मांगों का देश के लिए क्या परिणाम होगा इसकी उनको कोई परवाह नहीं थी। तब के रिपोर्ट्स के अनुसार - उनके लोगों को छोड़ दो, उनकी मांगें मान लो, बस हमारे लोग वापिस लाओ - या फिर - कश्मीर दे दो, देश दे दो, सब दे दो, बस हमारे लोग वापस लाओ - इस तरह की आवाजें उठ रही थी। बलिदानी कैप्टन आहूजा की विधवा पर अभद्र ताने मारे गए कि यह मनहूस अपना खसम खाकर आई है हमें वही सिखाने। 

यह 1999 की बात है, हवाई यात्रा महंगी होती थी। दूसरी बात यह है कि यह काठमांडू से नई दिल्ली आता हुआ हवाई जहाज था। लोग काठमांडू छुट्टियाँ मनाने गए थे। इन दो बातों से आर्थिक स्थिति समझ आती है, और उनकी बातों से उनकी मानसिकता। 

यही मानसिकता आज भी है। अपने स्वार्थों या हितों पर आघात होता है तो उन्हें बचाने किसी भी हद तक गिर जाने की। अपने किए का बचाव एक ही होता है कि देश समाज और धर्म से हमें क्या मिलता है जो हम हमारी सुविधाओं पर पानी छोड़ दें। ये सुविधाएं हमने अपनी मेहनत से कमाई हैं,  समाज, देश या धर्म का इनमें कोई योगदान नहीं है,  हम इन्हें क्यों छोड़ दें, यह तो अत्याचार है!

और बहुत ही कम हिन्दू इन सफल हिंदुओं से असहमत होंगे। 

"कौनो हो नृप, हमें क्या हानी"
 
बात यही है,  नृप बदलकर जब खलीफा या सुल्तान आता है तो क्या  हानि होती है यह समझ आनी चाहिए। लेकिन होता क्या है कि कितना भी पढ़ा हो, सुना हो, देखा हो,  जब अपनेपर आती है तो हर सफल हिन्दू सोचता है कि नुकसान दूसरों का हुआ था, वे मूर्ख थे, मैं बुद्धिमान हूँ, वे पापी थे, मैं उतना पापी नहीं हूँ,  भगवान मुझे बचा लेंगे.... आदि आदि .... और जब लुट जाता है तब ठीकरा फोड़ने को खुद को छोड़कर कोई भी चलता है,  सब से पहले तो भगवान का नंबर आता है कि उसने नहीं बचाया। कोई भगवान नहीं होता ।  

युद्ध में जो पक्ष युद्ध छेड़ना चाहता है वो हमेशा पूर्व तैयारी करता है। इसमें एक बड़ी बात होती है शत्रुओं की जासूसी जिससे शत्रु की प्रतिरोध क्षमता को क्षीण किया जाये। महत्व के ठिकानों का पता लगाया जाता है, उन्हें कैसे नाकाम करना है इसपर योजनाएँ बनाई जाती हैं। उसके लोगों के बीच फूट डालने के षडयंत्र बनाए जाते हैं। समाज में सरकार के प्रति रोष पैदा हो इसके लिए कई कांड किए जाते हैं - यहाँ गिनने लगें तो पोस्ट की पुस्तिका बन जाएगी। जासूसों को ऐसे वर्ग को भी चिह्नित करना होता है जिसके लिए स्वार्थ ही सर्वोपरि होता है। यह वर्ग पर्याप्त साधन सम्पन्न तथा महत्वाकांक्षी होता है। कमाई खोने का डर सब को होता है, और जितनी अधिक कमाई हो उतना डर भी अधिक होता है। इस वर्ग तक सूचनाएँ पहुंचा दी जाती हैं कि वे शत्रु का सहयोग करें या कम से कम अपने सरकार का सहयोग न करें तो उन्हें बख्श दिया जा सकता है। वरना हम तो जीतेंगे ही और तुमने हमारे कहने के विरुद्ध आचरण किया तो तुम्हारी खैर नहीं। 

आज भी यह मानसिकता सफल हिन्दू में कायम है। इसपर काम आवश्यक है कि शत्रु अपने वादे तोड़ने के लिए ही करता है, किसी को बख्शा नहीं जाता। जगत सेठ ने मराठों का साथ नहीं दिया लेकिन उसका तो म्लेच्छों ने ही निर्वंश कर दिया, नामलेवा भी नहीं छोड़ा। 

समरसता ही स्वरक्षण की कुंजी है। इसपर विस्तार अलग से करना होगा। यहाँ पोस्ट के शीर्षक पर लौटते हैं। 

कंधार की मानसिकता पर संक्षेप में लिख चुका। अब एन्टेबी की मानसिकता की बात करते हैं। 

एन्टेबी, युगांडा का वो एयरपोर्ट है जहां इस्राइल के विमान हाइजैक किए गए थे। हाइजैकर्स का भी कोई धर्म नहीं था। उनका साथ दे रहे थे युगांडा के तत्कालीन प्रमुख ईदी अमीन। वहाँ से इस्राइल के कमांडोज ने उन्हें किस कदर छुड़ाया इसपर काफी लिखा गया है, फिल्म भी बनी है, इसलिए हम केवल उन जहाजों में अपहृत यात्रियों के परिजनों की बात करेंगे। 

इस्राइल सरकार का निर्णय अतीव साहसी था, और असफल होता तो आत्मघात की भी था। युगांडा पर आक्रमण ही माना जाता, अच्छी बात इतनी ही थी कि युगांडा से प्रत्याक्रमण हो नहीं सकता था और न ही कोई युगांडा की बाजू से इस्राइल का कोई नुकसान करता। युद्ध नहीं होता और कोई निगेटिव प्रचार होता भी तो उसका सामना करने के लिए इस्राइल सक्षम था। वैसे भी moral high ground इस्राइल के पास था। लेकिन यह पूरी संभावना थी कि सब यात्रियों के साथ उनके छुड़ाने भेजे कमांडो भी वहीं मारे जाते। 

फिर भी इस्राइली प्रधान मंत्री रबीन ने यह निर्णय लिया, उनके मंत्री मण्डल ने और पूरी इस्राइल की जनता ने उनका साथ दिया। विपक्ष वहाँ भी है, लेकिन जिहादी काँग्रेस जितना कमीना नहीं है, वे भी साथ रहे। रबीन के दरवाजे पर धरना प्रदर्शन नहीं किए। और बाद में भी आलोचना नहीं की कि फेल होते तो क्या होता। उनके लिए वाकई राष्ट्र सर्वोपरि था, स्वार्थ या उम्मत सर्वोपरि नहीं । 

इसीलिए, भारत में हिन्दू ही रहकर गर्व से जीना है तो कंधार की मानसिकता से निकलकर एन्टेबी की मानसिकता लाना अनिवार्य है। वरना जीना ही मुमकिन नहीं होगा, कन्वर्ट होने का भी चॉइस नहीं मिलेगा। आप बोझ होंगे, आप को क्यों पालेंगे वे ? आप के माल से मतलब है और पसंद आए तो आपके घर की महिलाओं से, वरना उन्हें भी काट दिया जाएगा।

अर्जुन को युद्ध न करने का विकल्प नहीं था। आज हर भारतवासी हिन्दू अर्जुन ही है। 

तस्मादुत्तिष्ठ !
इदं राष्ट्राय, इदं न मम।

ठाकुर की कलम से✍

Comments