भारत की दो प्रमुख सीमेंट कंपनियों एसीसी और अंबुजा का इतिहास और कांग्रेसियों वामपंथियों की सोच का विश्लेषण

भारत की दो प्रमुख सीमेंट कंपनियों एसीसी और अंबुजा का इतिहास और कांग्रेसियों वामपंथियों की सोच का विश्लेषण

1936 में यानी आजादी के पहले भारत में कई छोटी-छोटी सीमेंट की कंपनियां हुआ करती थी जैसे ही ओखा सीमेंट लिमिटेड ग्वालियर सीमेंट इंडियन सीमेंट पंजाब एंड पोर्टलैंड सीमेंट कराची सीमेंट लिमिटेड 

फिर पारसी और गुजराती व्यापारियों इसमें जेआरडी टाटा, सेठ एडुजी दिनशा, अंबालाल साराभाई, वालचंद हीराचंद भाई, धर्मेशी खटाऊ, हैदराबाद के पूर्व प्रधानमंत्री अकबर हैदरी, हैदराबाद के तत्कालीन प्रधानमंत्री नबाब सालारजंग, सर होरमाशज जी फिरोजशाह मोदी (होमी मोदी) ने एक कंपनी बनाई एसोसिएटेड सीमेंट लिमिटेड कंपनी का मुख्यालय कराची में था और इसने भारत की 30 सीमेंट कंपनियों को खरीदा 

इसके अलावा इटली और ब्रिटेन की दो सीमेंट कंपनियों को खरीदा और पूरे विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी बनाई और इस कंपनी के सबसे बड़े ग्राहक अंग्रेज होते थे क्योंकि वह अंग्रेज आधी दुनिया पर राज करते थे और उन्हें अपने निर्माण कार्य के लिए सीमेंट चाहिए था

 देश के बंटवारे के बाद यह कंपनी दो  हिस्से में बंट गई इसमें एक सबसे बड़े पारसी व्यापारी और कराची पोर्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ एडूजी दिनाशा करांची में ही रुक गए क्योंकि उनका कराची में बहुत बड़ा व्यापार था 

(कभी मैं बाद में बताऊंगा की पाकिस्तान के सबसे अमीर सेठ एडुजी दिनशा के निधन के बाद उनकी संपत्तियों और उनके परिवार पर कितना अत्याचार किया गया कि उनका पूरा खानदान खरबों की जायदाद  पाकिस्तान में छोड़कर लंदन शरण ले लिया)

बंटवारे के बाद एसीसी सीमेंट लिमिटेड की भारत की इकाई का मुख्यालय मुंबई रखा गया और इस कंपनी ने इंदिरा गांधी के सत्ता में आने तक अच्छा काम किया 

फिर इंदिरा गांधी की नजर इस पर पड़ी और उन्होंने सीमेंट पर राशन सिस्टम लागू कर दिया यानी सीमेंट को परमिट के अंतर्गत ला दिया गया यानी अगर आपको सीमेंट खरीदना है तो सबसे पहले आपको तहसीलदार से परमिट लेना पड़ता था उसके बाद आप सीमेंट खरीद सकते और सीमेंट के निर्यात पर भी रोक लगा दिया जिससे यह कंपनी को भयंकर घाटे में ला दिया गया और यह सबकुछ जानबूझकर किया अंततः इस कंपनी के ऊपर सरकारी कंट्रोलर और ऑडिटर बिठा दिए गए यानी यह कंपनी सरकार के कंट्रोल में आ गई और फिर धीरे-धीरे यह कंपनी बेमौत मरती चली गई

इंदिरा गांधी का दौर भारतीय व्यापार के लिए सबसे खतरनाक दौर था जब इतने प्रतिबंध परमिट लाइसेंस कोटा लगा दिए गए थे एक सरकार का क्लास फोर्थ कर्मचारी भी हजारों करोड़ कंपनी के मालिक के घर पर जाकर उसका पूरा स्टॉक रजिस्टर चेक कर सकता था इंदिरा गांधी का दौर बिजनेस के इतिहास में भारत का सबसे काला दौर माना जाता है जब इंदिरा गांधी को यह लगा यदि सबकुछ सरकार अपने कंट्रोल में ले लेगी तब उससे भारत का भला होगा लेकिन यह भूल गई कि सरकार लालफीताशाही से चलती है और सरकारीकरण भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है 

इंदिरा गांधी ने न सिर्फ 26 से ज्यादा बैंकों बल्कि 40 से ज्यादा गुजरातियों और पारसियों की कंपनियों को जबरदस्ती उनसे छीन कर अपने कंट्रोल में ले लिया

अब आते हैं अंबुजा सीमेंट पर

1983 में कोलकाता में दो मारवाड़ी नरोत्तम सेकसरिया और सुरेश नियोतिया ने यह कंपनी बनाई इनके चार बड़े प्लांट गुजरात में बनाए गए क्योंकि सीमेंट जिस पत्थर से बनता है उस का सबसे बड़ा गढ़ गुजरात है 

धीरे-धीरे यह कंपनी काफी तरक्की करती गई और एक जमाने में यह कंपनी एशिया की प्रमुख सीमेंट कंपनियों में आ गई

भारत की सीमेंट कंपनियों का सुहाना दौर 2004 तक चला क्योंकि 2004 के पहले तक सभी सरकारों का यह सोचना था यदि हमने सीमेंट इंडस्ट्रीज में विदेशी निवेश की इजाजत दे दिया तब यह दुनिया की बड़ी बड़ी सीमेंट कंपनियां भारतीय सीमेंट कंपनियों को खा जाएंगे

2004 में मनमोहन सिंह ने इस पॉलिसी को बदल दिया और विदेश की कंपनियों को भी भारत में सीमेंट की फैक्ट्री लगाने उन्हें बेचने का लाइसेंस दे दिया और फिर विदेश की तमाम सीमेंट कंपनियां जिसमें जर्मनी की हाइडलबार्ग इंडिया सीमेंट लिमिटेड जिसका ब्रांड माईसेम है और फ्रांस तथा स्विट्जरलैंड की बहुत बड़ी सीमेंट कंपनी होलसिम ग्रुप जिसका विदेशी बाजार में लाफार्ज ब्रांड है फ्रांस की ही एक बड़ी कंपनी विकाट ग्रुप और अमेरिका के भी दो बड़े ग्रुप भारत की तमाम देसी सीमेंट कंपनियों में अच्छी खासी हिस्सेदारी खरीद लिए

यानी कि भारत में दो तरह की सीमेंट कंपनियां हो गई या तो पूरी तरह से विदेशी जैसे एसीसी और अंबुजा जिसे होलसेल ग्रुप में पूरा खरीद लिया था या फिर प्रिज्मा श्री सीमेंट अल्ट्राटेक जैसी तमाम देसी कंपनियां जिसमें 30% से लेकर ज्यादा हिस्सेदारी विदेशी कंपनियों की हो गई थी यानी कंट्रोलिंग पावर विदेशियों के पास आ गई थी 

उसके बाद एक बहुत गंदा खेल खेला गया यानी भारत में सीमेंट कंपनियों ने अपना एक कार्टेल बना लिया और यह बात भारत सरकार की जांच में तीन बार साबित हुआ था और सीमेंट कंपनियों के ऊपर डेढ़ सौ करोड़ से लेकर 1200 करोड़ तक का लंबा चौड़ा जुर्माना भी लगाया गया 

यानी बगैर किसी लागत के बढ़ने के भारत की सभी सीमेंट कंपनियां मिलकर एक साथ प्राइस बढ़ा देती थी यह तरीका विदेशों में खूब प्रचलित है और यह व्यापार की सबसे गंदी रणनीति मानी जाती है जब सभी कंपनियां एक साथ मिलकर अपना एक कोर्टल बना ले और फिर प्राइस कंट्रोल अपने हाथ में ले ले इससे भारतीय उपभोक्ताओं को काफी नुकसान होने लगा 

अंततः जब मोदी सरकार के दौर में सीमेंट कंपनियों के 
गैर कानूनी कार्टेल की जांच की गई और कई बार उनके ऊपर जुर्माना लगाया गया

फिर विदेशी कंपनियों को लगा अब यह कांग्रेस का दौर नहीं है अब यह भारत को उस तरह से नहीं लूट सकती जिस तरह पहले लूटा करती थी अंततः उन्होंने अपना बोरिया बिस्तर भारत से बांधने का मन बना लिया

फिर गौतम अडानी ने फ्रांस और स्विट्जरलैंड की संयुक्त कंपनी होलसिम के दोनों बड़े ब्रांड अंबुजा और एसीसी सीमेंट को खरीद लिया और यह डील 81 हजार करोड़ से ज्यादा में हुई है 

अब जरा कुछ बातें सोचिए

जब विदेशी सीमेंट कंपनियाँ भारतीय सीमेंट कंपनियों को खरीद रही थी क्या आपने किसी कांग्रेसी या वामपंथी नेता को छाती कूटते देखा ? यह देखिए विदेशी कंपनी भारत में आ गई है भारतीय कंपनी को खरीद रही है 

जब भारतीय कंपनी का जबर्दस्ती सरकारीकरन किया जा रहा था ताकि सरकार में बैठे लोग भ्रष्टाचार कर सके तब यह लोग सरकारी करण के फायदे गिना कर खुश हो  रहे थे

लेकिन यह लोग लेकिन जब एक भारतीय बिजनेसमैन गौतम अदानी विदेशी सीमेंट कंपनियों को खरीदने लगा इन कांग्रेसियों और वामपंथी को पीड़ा होने लगी 

इनकी सोच इतनी गंदी है अब तक हिंदुस्तान लीवर युनिलीवर लिमिटेड और विदेश की तमाम बड़ी कंपनियों को मूर्ख बना रही थी तब किसी कांग्रेसी या किसी वामपंथी ने इन कंपनियों के प्रोडक्ट का विश्लेषण नहीं किया था लेकिन जैसे ही एक भारतीय बाबा रामदेव ने विदेशी कंपनियों को चुनौती देते हुए भारत के एफएमसीजी बाजार पर पकड़ बनाना शुरू किया तब सबसे ज्यादा शोर कांग्रेसी और वामपंथियों ने ही मचाया

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